सरकार खुद कबूल रही कि कोरोना काल में पढ़ाई नहीं हुई तो अभिभावकों पर फीस का दबाव क्यों?

जयपुर। पिछले डेढ़ साल से ज्यादा समय से प्रदेश में निजी स्कूलों की फीस का मामला चल रहा है। डेढ़ साल से निजी स्कूलों के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे अभिभावकों के प्रमुख संगठन संयुक्त अभिभावक संघ का कहना है कि एक तरफ राज्य सरकार आरटीई के भुगतान पर खुद स्वीकार कर रही है कि कोरोना काल में स्कूल बंद रहे और बच्चों की पढ़ाई नहीं हुई तो वह भुगतान क्यों देवे? वही दूसरी तरफ अभिभावक भी राज्य सरकार और शिक्षा विभाग से यही मांग कर रहे हैं कि जब उन्हें स्कूलों से सुविधा प्राप्त नहीं हुई तो वह फीस क्यों दे? फीस वसूली के लिए अभिभावकों पर दबाव क्यों बनाया जा रहा है? फीस को लेकर एक ओर जहां अभिभावक चिंतित है तो वहीं दूसरी ओर स्कूल्स और राज्य सरकार है जो अभिभावकों की सुध तक नहीं ले रहे हैं। मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट निर्णय दे चुका है, उसके बावजूद ना राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना करवा रही है और ना ही स्कूल संचालक सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना कर रहे हैं। निजी स्कूलों की फीस वसूली की भूख इतनी बढ़ गई है कि वह बिना पढ़ाई करवाए अभिभावकों से पूरी फीस भी वसूल रहे हैं तो वही दूसरी तरफ आरटीई के तहत निजी स्कूलों में पढ़ रहे गरीब बच्चों की फीस वसूली के लिए भी राज्य सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल और प्रदेश महामंत्री संजय गोयल ने कहा कि निजी स्कूलों की फीस मसले को लेकर राज्य सरकार और शिक्षा विभाग दोहरा चरित्र अपना रही है। एक तरफ अभिभावकों की शिकायत पर चुप्पी साधकर निजी स्कूलों को संरक्षण दिया जा रहा है, वही दूसरी तरफ आरटीई के भुगतान पर अभिभावकों के तर्कों का इस्तेमाल कर आरटीई का भुगतान पर रोक लगा रही है। आरटीई के फंड को लेकर जो तर्क रखा जा रहा है वह शत प्रतिशत सही है। अप्रैल, मई और जून 2020 में स्कूल पूरी तरह से बंद थे। ना ऑनलाइन क्लास चल रही थी और ना ही ऑफलाइन क्लास चल रही थी। जुलाई से स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास शुरू की, किंतु मात्र 15 प्रतिशत बच्चों ने ऑनलाइन क्लास अटेंड की। उसके बाद राज्य सरकार ने 40 प्रतिशत कोर्स कम कर दिया और केंद्र सरकार ने 30 प्रतिशत कोर्स कम कर दिया। जनवरी में कक्षा 9 से 12 की ऑफलाइन क्लास शुरू हुई जिसमें भी मात्र 25 से 30 प्रतिशत बच्चे ही शामिल हुए। उसके बाद सभी क्लास के बच्चों को प्रमोट किया गया। जो लाभ अभिभावकों को मिलना चाहिए था उसका फायदा निजी स्कूलों और शिक्षा को व्यापार बनाए बैठे मुनाफाखोरों ने अभिभावकों पर बच्चों के भविष्य का डर दिखाकर, पढ़ाई रोककर, डरा-धमका कर खुद वसूल लिया। इन संदर्भ में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय और ऑफिशियल ईमेल आईडी पर हजारों शिकायतें भेजी गई किंतु आज तक सुनवाई नहीं हुई।
एडवोकेट अमित छंगाणी का कहना है कि कानून के रक्षक ही कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। सत्ता और प्रशासन के लोग शिक्षा के माफियाओं को संरक्षण देकर उनका पालन पोषण कर रहे हैं।
प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि राज्य सरकार अभिभावकों की कमजोरी का फायदा निजी स्कूलों के साथ मिलकर उठा रही है। अभिभावक बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर सदैव चिंतित रहता है, किंतु निजी स्कूल व शिक्षा विभाग अभिभावकों की इसी कमजोरी का फायदा उठा फरियादी अभिभावकों को खदेड़ कर व डरा-धमका कर भगा देते हैं। जबकि निजी स्कूलों, शिक्षा विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों व राज्य सरकार के सभी जनप्रतिनिधियों को भी यह अहसास होना चाहिए कि वह खुद भी एक अभिभावक है।

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