सात्विक अन्न मतलब जो सात्विक मन की स्थिति से बनाया गया हो

आजकल के बच्चे बाहर का खाना पसंद करते हैं। घर पर भी खाना बनाने के लिए कुक या हेल्पर होती है। वजह यह कि हमारे पास वक्त नहीं है। हम पैसा कमाने बाहर जो जाते हैं। हमारा सारा फोकस पैसे कमाने पर हो गया है। लेकिन हमें समझना होगा कि धन, ताकत या पौष्टिकता नहीं दे सकता, सिर्फ सामान दे सकता है। कहावत है जैसा अन्न वैसा मन। लेकिन जैसा मन वैसा अन्न भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि घर में कम से कम एक बार अपने हाथों से भोजन बनाएं। कुछ देर ध्यान लगाएं। इससे खाने में एक अलग एनर्जी आ जाएगी। फिर वो खाना, खाना नहीं रह जाता, फिर वो खाना प्रसाद बन जाता है। जिसमें परमात्मा की याद की शक्ति भर जाती है। वो भोजन परिवार वालों के मन को भी शांत रखेगा और शरीर को भी सेहत देगा।
जो भी घर में खाना बना रहे हैं उसको भी ध्यान रखना है कि कैसी मन की स्थिति में हम खाना बना रहे हैं। अन्न सात्विक, मन सात्विक, धन सात्विक तो तन तो अपने आप सेहतमंद हो जाएगा। जब हमारे घर में सात्विक धन आएगा तो मन सात्विक बनेगा। जब धन और मन सात्विक होगा तो घर में अन्न भी सात्विक आएगा। देवी-देवताओं को सात्विक अन्न का ही भोग लगाया जाता है। किसी ने नफरत, गुस्सा हमारे सामने प्लेट में सजाकर रख दिया और कहा प्रोटीन्स हैं, कार्बोहाइड्रेट्स है तो वह न फायदेमंद होगा न स्वादिष्ट। जब घर में किसी की मृत्यु होती है तो खाना नहीं बनता है। श्मशान घाट से बाहर आते ही सबसे पहले हम नहाते हैं, रसोईघर की धुलाई करते हैं, तब रसोईघर खुलता है। इसके पीछे कोई तो कारण होगा? मृत शरीर के अंदर कीटाणु हैं, निगेटिव वायब्रेशन्स है, दर्द है।
जब मृत शरीर घर में होते हुए खाना नहीं बन सकता तो मृत शरीर का खाना कैसे बन सकता है? हम डेथ की एनर्जी से लाइफ और हेल्थ देना चाहते हैं अपने आपको। यह कर्म फिलॉसफी नहीं वैज्ञानिक तौर पर भी लॉजिकल नहीं है कि मृत शरीर से जीवित स्वास्थ्य तैयार किया जाए। आप तीन महीने के लिए प्रयोग करके देखो कि सात्विक अन्न का आपके मन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है। सात्विक अन्न मतलब सिर्फ शाकाहारी नहीं बल्कि सात्विक अन्न मतलब जो सात्विक मन की स्थिति से बनाया गया हो। हम तीन जगह भोजन खाते हैं। एक बाहर होटल में, दूसरा घर में मां के हाथ का बना और तीसरा मंदिर, गुरुद्वारे, आश्रम में जिसे प्रसाद या लंगर कहते हैं। तीनों जगहों के वायब्रेशन्स में फर्क आप स्वयं अनुभव करेंगे। होटल में वायब्रेशन्स धन कमाने के लिए होते हैं।
पिछले कुछ सालों में हमने बाहर का खाना शुरू कर दिया है। अपने बच्चों को भी बाहर का खाना मंगवा कर देते हैं। दिमाग में रिश्ते पीछे और पहले पैसा महत्वपूर्ण हो चुका है। एक वो समय था जब हम घर में मां के हाथ का बना खाना खाते थे तो मां पहले और पैसा बाद में होता था। अन्न किसके हाथ का खाया, वायब्रेशन्स किसके हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है।

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