आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने पर मकान ढहा दिया जाना मनमाना

इलाहाबाद में 10 जून को वेलफेयर पार्टी के नेता जावेद मोहम्मद के घर को गिराने के लिए अधिकारियों द्वारा जो भी कारण दिए गए हों, लेकिन वह कार्रवाई अवैध थी। ऐसा किया जाना दंडित करने का वो तरीका है, जिसका भारतीय कानून में कोई उल्लेख नहीं किया गया है और इसलिए यह अवैध है। यहां कानून के राज का महज उल्लंघन नहीं हुआ बल्कि यह जानबूझकर की गई कानून की अवहेलना है। जो एक सभ्य समाज में नहीं होना चाहिए, वो सब हुआ है। अगर हम मान भी लें कि जो प्रदर्शन हुए, उनमें जावेद शामिल था, हम ये भी मान लेते हैं कि वहां कुछ ऐसी गतिविधि भी हुई होगी जिसे हम आपराधिक गतिविधि मान लेते हैं, बावजूद इसके इस स्तर पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। सबसे पहले एक केस दर्ज करना होगा, सबूत एकत्र करने होंगे, उनके आधार पर आरोपी तय करने होंगे, चालान दर्ज होगा, आरोप दायर किए जाएंगे, सुनवाई होगी और बिना दोष साबित हुए कोई सजा नहीं हो सकती। और सजा भी वही मिलेगी जो आईपीसी में लिखी है।

किसी के आपराधिक गतिविधि में लिप्त होने पर मकान ढहा दिया जाना मनमाना है। ऐसे तो कानून और पुलिस की जरूरत ही नहीं है। आप जो चाहे फैसला लीजिए और सजा दीजिए। यह कहा जाना कि वो किसी आपराधिक गतिविधि का हिस्सा था, इसलिए ये कार्रवाई हुई, अतार्किक बात है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी भी अपराध के लिए इस तरह मकान ढहा नहीं सकते क्योंकि आईपीसी में ऐसा दंड बताया ही नहीं गया है। कारावास हो, जुर्माना लगाया जाए, वो अलग बात है, लेकिन किसी इमारत को ढहा दिया जाए, यह कानून में कहीं नहीं कहा गया है। ध्वस्तीकरण या तोड़फोड़ की कार्रवाई की पूरी प्रक्रिया है, हर राज्य में अपने स्थानीय नियम-कायदे हैं। अगर उस प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है तो यह गैर कानूनी है। ऐसी कोई भी कार्रवाई करते समय अथॉरिटी को यह बताना होगा कि उचित प्रक्रिया की पालना की गई, कानून को अनदेखा नहीं किया गया। कोई भी अवैध निर्माण या अतिक्रमण है, जिसे कानूनी अनुमति नहीं तो उसे हटाया जा सकता है, लेकिन एक प्रक्रिया का पालन करने के बाद। अगर किसी कानूनी निर्माण में कोई बदलाव होता है तो उसके लिए म्युनिसिपल कानून हैं, जिनके तहत अमूमन जुर्माना लिया जाता है। इसलिए पहले यह तय किया जाता है कि जो अवैध बदलाव हुए हैं, उनके लिए कितना जुर्माना तय किया जा सकता है। इन्हीं वजहों से उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना जरूरी है, इसकी अवहेलना किसी सूरत में नहीं की जा सकती, जहां कहीं ऐसा किया गया वो मनमानी कार्रवाई है। किसी भी हाल में संबंधित लोगों को उचित नोटिस भी देना होगा, ताकि घर के मालिक को एक उपयुक्त मंच में प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बनाया जा सके।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह केवल अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दा नहीं है। यदि कोई समुदाय असुरक्षित महसूस कर रहा है तो यह पूरे देश के नागरिकों के लिए चिंता का विषय है। अभी कई आवाजें खामोश होंगी लेकिन ऐसा नहीं है कि लोग इस बारे में नहीं सोच रहे हैं।

(इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस गोविंद माथुर ने एक साक्षात्कार में कहा)

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