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फ्रोजन शोल्डर कंधे से संबंधित बीमारी है। इसमें कंधे की हड्डियों को मूव करना मुश्किल होने लगता है। मेडिकल भाषा में इस दर्द को एडहेसिव कैप्सूलाइटिस कहा जाता है। वहीं, आम बोलचाल में इसे कंधे जाम हो जाना भी कहते है।
हर जॉइंट के बाहर एक कैप्सूल होता है। फ्रोजन शोल्डर में यही कैप्सूल स्टिफ या सख्त हो जाता है। यह दर्द धीरे-धीरे और अचानक शुरू होता है और फिर पूरे कंधे को जाम कर देता है। जैसे ड्राइविंग के दौरान या कोई घरेलू काम करते-करते अचानक यह दर्द हो सकता है। जिन लोगों को फ्रोजन शोल्डर की समस्या होती है उनके कंधे बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। ऐसे में उन लोगों के लिए कंधों से जुड़ा कोई भी काम कर पाना मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि छोटे-मोटे काम जैसे, ब्रश करना, कंघी करना, कार चलाना जैसे काम भी नहीं कर पाते। ये सभी काम करने में कंधों में तेज दर्द होता है और हाथ उठा पाना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी फ्रोजन शोल्डर इतना गंभीर हो सकता है कि प्रभावित व्यक्ति के लिए काम कर पाना पूरी तरह मुश्किल हो जाता है और अपने कामों के लिए दूसरों की मदद पर निर्भर होना पड़ता है।
लक्षण और चरण
वैसे तो शॉक या चोट से यह समस्या नहीं होती, लेकिन कभी-कभी ऐसा हो सकता है। फ्रोजन शोल्डर में दर्द अचानक उठता है। धीरे-धीरे कंधे को हिलाना-डुलाना मुश्किल हो जाता है। इसके तीन चरण हैं-
फ्रीज पीरियड: इसमें कंधा फ्रीज या जाम होने लगता है। तेज दर्द होता है, जो अकसर रात में बढ़ जाता है। कंधे को घुमाना या मूव करना मुश्किल हो जाता है।
फ्रोजन पीरियड: इस पीरियड में कंधे की स्टिफनेस बढ़ती जाती है। धीरे-धीरे इसकी गतिविधियां कम हो जाती हैं। दर्द बहुत होता है, लेकिन असहनीय नहीं होता।
तीसरी स्थिति: ऐसा लगता है कि दर्द में सुधार आ रहा है। मूवमेंट भी थोड़ा सुधर जाता है, लेकिन कभी-कभी अचानक तेज दर्द हो सकता है।
फ्रोजन शोल्डर के कारण
- गलत तरीके से सोना
- लगातार कंप्यूटर के सामने बैठकर काम करना
- लगातार वाहन चलाना
- किसी प्रकार की चोट लगना
- उम्र बढ़ने के साथ भी यह समस्या आ सकती है
जांच और इलाज
लक्षणों और शारीरिक जांच के जरिए डॉक्टर इसकी पहचान करते हैं। प्राथमिक जांच में डॉक्टर कंधे और बांह के कुछ खास हिस्सों पर दबाव देकर दर्द की तीव्रता को देखते हैं। इसके अलावा एक्स-रे या एमआरआई जांच कराने की सलाह भी दी जाती है। शुरुआत में पेन किलर के जरिए पहले दर्द को कम करने की कोशिश की जाती है, जिससे मरीज कंधे को हिला-डुला सके। दर्द कम होने के बाद फिजियोथेरेपी शुरू कराई जाती है, जिसमें हॉट और कोल्ड कंप्रेसर पैक्स भी दिया जाता है। इससे कंधे की सूजन व दर्द में राहत मिलती है। कई बार मरीज को स्टेरॉयड्स भी देने पड़ते हैं, हालांकि ऐसा अपरिहार्य स्थिति में ही किया जाता है, क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है। गंभीर स्थिति में लोकल एनेस्थीसिया देकर भी कंधे को मूव कराया जाता है। इसके अलावा सर्जिकल विकल्प भी आजमाए जा सकते हैं।
सावधानियां
1. दर्द को नजरअंदाज न करें। यह लगातार हो तो डॉक्टर को दिखाएं।
2. दर्द ज्यादा हो तो हाथों को सिर के बराबर ऊंचाई पर रख कर सोएं। बांहों के नीचे एक-दो कुशंस रख कर सोने से आराम आता है।
3. तीन से नौ महीने तक के समय को फ्रीजिंग पीरियड माना जाता है। इस दौरान फिजियोथेरेपी नहीं कराई जानी चाहिए। दर्द बढने पर डॉक्टर की सलाह से पेनकिलर या इंजेक्शन लिए जा सकते हैं।
4. छह महीने के बाद शोल्डर फ्रोजन पीरियड में जाता है। तब फिजियोथेरेपी कराई जानी चाहिए। 10 प्रतिशत मामलों में मरीज की हालत गंभीर हो सकती है, जिसका असर उसकी दिनचर्या और काम पर पड़ने लगता है। ऐसे में सर्जिकल प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
5. कई बार फ्रोजन शोल्डर और अन्य दर्द के लक्षण समान दिखते हैं। इसलिए एक्सपर्ट जांच आवश्यक है, जिससे सही कारण पता चल सके।