बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था हेल्पएज इंडिया के द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 82 फीसदी बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रहते हैं, लेकिन उनमें से काफी बुजुर्ग अपने बेटों और बहुओं के हाथों पीड़ित महसूस करते हैं। तमाम बुजुर्ग घर वालों के गलत बर्ताव के कारण उनसे बात नहीं करते तो तीन चौथाई से ज्यादा बुजुर्ग परिवार में रहने के बावजूद भी अकेलेपन के शिकार हैं। 79 प्रतिशत बुजुर्गों को लगता है कि उनका परिवार उनके साथ पर्याप्त समय नहीं बिताता है। भले ही अधिकांश (82 प्रतिशत) बुजुर्ग अपने परिवार के साथ रह रहे हैं, लेकिन 59 प्रतिशत चाहते हैं कि उनके परिवार के सदस्य उनके साथ अधिक समय बिताएं। इससे पता चलता है कि परिवार के साथ रहने के बाद भी बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेलापन महसूस करते हैं।
सर्वे के मुताबिक, देश में 59 फीसदी बुजर्गों को लगता है कि समाज में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। केवल 10 फीसदी ने ही इस बात को स्वीकार किया कि वे भी दुर्व्यवहार के शिकार हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 36 फीसदी रिश्तेदारों, 35 फीसदी बेटे और 21 फीसदी बहू के द्वारा परेशान हैं। वहीं, 57 फीसदी अनादर, 38 फीसदी मौखिक दुर्व्यवहार, 33 फीसदी उपेक्षा, 24 फीसदी आर्थिक शोषण और 13 फीसदी बुजुर्गों ने पिटाई और थप्पड़ मारने के रूप में शारीरिक शोषण का अनुभव किया।
राजधानी दिल्ली की बात करें तो 74% बुजुर्गों का मानना है कि इस तरह के दुर्व्यवहार समाज में प्रचलित हैं, जबकि 12% ने ही खुद को पीड़ित बताया। बुजुर्ग अपने बेटों (35%) और बहुओं (44%) को दुर्व्यवहार के सबसे बड़े कारण मानते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर दुर्व्यवहार झेलने वाले बुजुर्गों में से 47% ने कहा कि उन्होंने परिवार के दुर्व्यवहार के कारण प्रतिक्रिया के रूप में ‘उनसे बात करना बंद कर दिया’। दिल्ली में 83% बुजुर्गों ने कहा कि उन्होंने ‘परिवार से बात करना बंद कर दिया।’ दुर्व्यवहार की रोकथाम के संबंध में 58% बुजुर्गों ने राष्ट्रीय स्तर पर कहा कि ‘परिवार के लोगों की काउंसिलिंग किए जाने’ की आवश्यकता है, जबकि 56% बुजुर्गों ने कहा कि नीतिगत स्तर पर इससे निपटने के लिए ‘समयबद्ध निर्णयों’ और एज-फ्रैंडली रिस्पॉन्स सिस्टम को बनाने की जरूरत है। लेकिन चिंता की बात है कि 46% बुजुर्गों को किसी भी दुर्व्यवहार निवारण तंत्र के बारे में पता नहीं है और केवल 13 फीसदी लोगों को ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007’ के बारे में पता है। दिल्ली में 38% बुजुर्गों का कहना है कि वे दुर्व्यवहार के लिए निवारण तंत्र के बारे में नहीं जानते हैं, जबकि बेंगलुरु के लिए यह आंकड़ा 80% और रायपुर के लिए 84% प्रतिशत है।
सामाजिक समावेशन के मुद्दे पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हासिल हुईं। 78 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना कि घर पर उनकी देखभाल करने वाले लोग परिवार के मसलों पर निर्णय लेने में उन्हें शामिल करते हैं, लेकिन 43.1 प्रतिशत बुजुर्गों ने युवा पीढ़ी द्वारा उपेक्षित महसूस किया और खुद को अलग-थलग भी बताया। हालांकि, जब आय की पर्याप्तता के बारे में पूछा गया, तो राष्ट्रीय स्तर पर 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उनकी आमदनी अपर्याप्त है। 40 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, इसके दो बड़े कारण हैं- पहला, क्योंकि ‘उनके खर्च उनकी बचत/आमदनी से अधिक हैं’ (57 प्रतिशत) और दूसरा, पेंशन भी पर्याप्त नहीं है (45 प्रतिशत)। इससे पता चलता है कि बाद के वर्षों के लिए वित्तीय नियोजन और सामाजिक सुरक्षा दोनों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस बीच दिल्ली में 52 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनकी आय पर्याप्त है, जबकि 48 प्रतिशत का कहना है कि उनकी आमदनी बहुत कम है और इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। दिल्ली में कुल मिलाकर करीब 71 फीसदी बुजुर्गों का कहना है कि वे अपने आप को वित्तीय रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं। हालांकि यह सर्वेक्षण रिपोर्ट बड़े पैमाने पर शहरी मध्यम वर्ग की स्थिति बयान करती है, लेकिन यह गरीब शहरी और ग्रामीण बुजुर्गों की दुर्दशा पर भी सवाल खडे़ करती है। ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है या पर्याप्त आय अथवा पेंशन नहीं है।