'मानव के आत्मिक विकास में संस्कृत की भूमिका' विषय पर ऑनलाइन संवाद

नीदरलैंड्स। साझा संसार नीदरलैंड्स की पहल पर ‘संस्कृत की वैश्विक विरासत’ के तहत ‘मानव के आत्मिक विकास में संस्कृत की भूमिका’ विषय पर ऑनलाइन संवाद आयोजन किया गया। इस विषय पर बीबीसी पत्रकार विजय राणा ने सम्पदानंद मिश्रा से संवाद किया। संवाद को शुरू करते हुए विजय राणा ने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई संस्कृत को अपनाये बिना अधूरी रह गई।
सम्पदानंद मिश्रा ने विजय राणा के सवालों के जवाब देते हुए बताया कि संस्कृत और स्वतंत्रता दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। संस्कृत परम चेतना के तल से उतरी हुई भाषा है। स्वयंभू भाषा है। सत्य जब मानव चेतना से अभिव्यक्ति पाता है तो वह अपनी भाषा के साथ उतरता है। इसलिए संस्कृत सतयुग की भाषा है। उन्होंने बताया कि भाषा के रूप में संस्कृत शब्द का प्रयोग पाणिनि ने किया। इससे पूर्व भाषा का स्वरूप छंद और लौकिक भाषा के रूप में था। पाणिनि के व्याकरण से लेकर। पाणिनि के व्याकरण की कमियों को कात्यायन द्वारा पूरा किया जाना। इन सब तथ्यों को विस्तार से बताया। संस्कृत भाषा के प्रति पश्चिम के रूख पर बातचीत करते हुए कहा कि पश्चिम अध्यात्म में डूबकर ही संस्कृत को समझ सकता है। संस्कृत के एक एक शब्द के अर्थों में अर्थ छुपे हैं।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस समय संस्कृत को जन जन की भाषा बनाने के लिए बाल साहित्य संस्कृत के सरलीकरण व निर्माण की आवश्यकता है। जिस पर बहुत काम किया जा रहा है। बच्चों के आन्तरिक विकास का आधार है संस्कृत। ग्लोबल सिटीजन के नाम संदेश में मिश्रा ने कहा कि जीवन के मूल जुड़ें। जीवन मूल्यों से जुड़ें। तभी एक स्वस्थ संसार का निर्माण हो सकेगा। इस अवसर पर रामा तक्षक ने कहा कि मानव जीवन में चेतना के शिखर ‘अहम ब्रह्मास्मि’ की राह दिखाने की क्षमता केवल संस्कृत में ही है। इस आयोजन का संचालन इंदु बारैठ तथा तकनीकी संचालन राजेंद्र शर्मा ने किया।

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