कविता संग्रह 'क्या बने बात' पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

जयपुर। साहित्य और कलाओं को समर्पित विश्वस्तरीय मंच ‘साझा संसार’ हालैंड ने समकालीन कविता के शिखर कवि लीलाधर मंडलोई की सेतु प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित कविता संग्रह ‘क्या बने बात’ पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। इस संगोष्ठी में कवि परिचय देते हुए संयोजक रामा तक्षक ने कवि की सर्वहारा जमीन का उल्लेख करते हुए उनके मजदूर जीवन, आदिवासी लोक चेतना, निम्नवर्गीय समाज की समझ और सृष्टि की पक्षधर कविताओं पर रोशनी डाली।

संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. धनंजय वर्मा ने कविताओं में मनुष्यता की विश्व पक्षधर संवेदना, दृष्टि और स्थानीयता की सार्वकालिकता को रेखांकित करते हुए लीलाधर मंडलोई को समकालीन कविता में अलग सांस्कृतिक और राजनीतिक आवाज बताया। अपने सर्वाधिक प्रिय कवियों में शुमार करते हुए डॉ. वर्मा ने कहा कि मंडलोई का यह संग्रह संगीत, चित्रकला, नृत्य, नाटक, फोटोग्राफी की ताकत के तत्वों से विन्यस्त है। साथ ही एकरेखीय सौंदर्य का अतिक्रमण करता है।

विश्व चेतना के कवि लीलाधर मंडलोई की सार्वभौमिक काव्य दृष्टि

डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि लीलाधर मंडलोई की कविताएं समकालीन कविता में पूर्ववर्ती रचनाकारों के लहजे से बिल्कुल अलग है। उन्होंने अपनी छवि को सतत रूप से निखारा है। मंडलोई के सृजन में प्रतिरोध के स्वर को समझने के लिए नई दृष्टि की आवश्यकता है। साथ ही साथ उन्होंने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाएं एक दूसरे की ताकत हैं। इसी तथ्य को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ साहित्यकार मदन कश्यप ने कहा कि हिंदी कविता की धार में लीलाधर मंडलोई ने प्रतिरोध की परंपरा में नई पहचान बनाई है। मंडलोई के जीवन में मजदूरों का संघर्ष उनके जीवन का हिस्सा रहा है। उनके काव्य में प्रतिरोध की गहराई, प्रतिरोध का नया रूप, चित्र और देशज शब्दों, रंगों और चित्रों से प्रतिरोध का नया आयाम सामने उभर कर आया है।

लीलाधर मंडलोई ने कहा कि मैं कविता में एक खास पहचान बन जाने के खिलाफ हूं। इस संग्रह में मैंने अपने अब तक लिखी कविताओं का भाषा, कहन सौंदर्य चेतना की दृष्टि से अतिक्रमण किया है। मैंने कविता को चित्र, ध्वनि, संगीत, फिल्म और छायाकारी के तत्वों से जोड़ा है। मेरी कविता की धुरी प्रेम और करुणा पर टिकी है। सौमित्र सक्सेना ने लीलाधर मंडलोई में प्रेम की अभिव्यक्ति को जयदेव से जोड़कर कहा कि कवि अपूर्व राग के कवि हैं। बर्बर समय में पक्षधरता और हस्तक्षेप को साबित करती ये कविताएं एक ओर मुक्तिबोध तो दूसरी ओर नजीर अकबराबादी से अपना नाता जोड़ती विलक्षण भाव में प्रासंगिक हो उठती हैं। पर्यावरण और जैव पारिस्थितिकी की ऐसी कविताएं युद्ध कालीन दौर में प्रकृति पर मंडराते खतरों में दुर्लभ हैं। विस्थापन, महामारी, नागरिकता के सवालों पर इतनी मार्मिक कविताएं कहीं और पढ़ने में नहीं आती। लीलाधर मंडलोई की कविताएं भयहीन मुद्राओं में समय के मुद्दों से सीधे टकराती हैं।

पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि लीलाधर मंडलोई का यह संग्रह चित्रात्मक संवेदना का ऐसा विरल उदाहरण है। जिसमें चित्र ध्वनियों के साथ हो दोआब की भाषा में आते हैं। उनकी कविताओं के कैनवास में मजदूर, किसान, विस्थापित रोहिंग्या, अफगानिस्तान में तालिबान के उन्माद और हत्याओं, कोरोना से पीड़ित शहर से पलायन करते लोगों का दुख दर्द समाया है। इतना प्रासंगिक संग्रह कोई दूसरा देखने में नहीं आया।

युवा कवि आशीष कपूर ने मनुष्य के मशीन होते जाने की त्रासदी पर लीलाधर मंडलोई की ‘रोबोट’ रचना का पाठ करते हुए कवि की वैज्ञानिक चेतना को महत्वपूर्ण बताया। राजेंद्र शर्मा ने कविताओं की गहराई को लक्षित करते हुए ‘मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं’ कविता का पाठ किया। यह रचना बोलने की आजादी पर अंकुश को बयान करती है। अमेरिका से नीलम जैन ने कबीर के निर्गुण प्रेम विषय की कविता को परंपरा में एक नया प्रकाशित कोण बताया। शिवांगी शुक्ला ने कुमार अनुपम की भूमिका में उल्लिखित गुणों का जिक्र किया। विश्व के कई देशों से लेखक और पाठक कार्यक्रम में अंत तक जुड़े रहे। संयोजक रामा तक्षक ने संगोष्ठी को साझा संसार की उपलब्धि निरूपित करते हुए आभार प्रकट किया।

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