RoSCTL योजना 'मेक इन इंडिया' के खिलाफ, निर्यातकों की बजाय आयातकों को लाभ

जयपुर। देश के कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने और इसके निर्यात को मजबूत करने के इरादे से शुरू की केंद्र सरकार की योजना रिबेट ऑफ स्टेट एंड सेंट्रल टैक्सेज एंड लेवी (RoSCTL) की संरचना में कमी से निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो ‘मेक इन इंडिया’ नीति के खिलाफ है। RoSCTL योजना निर्यातकों द्वारा इनपुट से पहले भुगतान किए गए करों, लेवी आदि के लिए छूट प्रदान करती है। इस छूट को अब उन स्क्रिप्स में बदल दिया गया है, जिनकी खरीद-बिक्री की जा सकती है। यानी निर्यातक अपनी स्क्रिप्स को आयातकों को बेच सकते हैं और आयातक बदले में आयात शुल्क के नकद भुगतान के विकल्प के तौर पर इन खरीदे गए स्क्रिप्स के साथ अपने आयात शुल्क का भुगतान कर सकते हैं। लेकिन ये स्क्रिप्स आयातकों द्वारा डिस्काउंट के साथ खरीदे जाते हैं, जिससे आयातकों को तो फायदा हो जाता है, जबकि निर्यातकों को अपनी भुगतान की गई पूरी राशि नहीं मिल पाती। आमतौर पर चलने वाला 3 प्रतिशत का डिस्काउंट कभी बढ़कर 20 प्रतिशत तक हो जाता है। इसके अलावा निर्यातकों को स्क्रिप्स लाइसेंस जनरेट करने के लिए आईटी के जानकार की जरूरत होती है, जो अतिरिक्त खर्चा है। RoSCTL का मौजूदा स्वरूप घरेलू कपड़ा उद्योग के निर्यात मार्जिन को कम कर रहा है। इस संबंध में गारमेंट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (GEAR) की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को ज्ञापन भेजा गया है। इससे पहले गारमेंट एक्सपोर्टर्स एंड मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन (GEMA) की ओर से टैक्सटाइल मिनिस्टर पीयूष गोयल सहित शीर्ष अधिकारियों को ज्ञापन दिए जा चुके हैं।

जयपुर में सोमवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में गारमेंट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के अध्यक्ष विमल शाह ने कहा कि कपड़ा उद्योग चाहता है कि सरकार लेन-देन योग्य स्क्रिप्स के बजाय नकद प्रतिपूर्ति योजना को फिर से शुरू करे, क्योंकि इन स्क्रिप्स का लेन-देन 20 प्रतिशत छूट पर हो रहा है। इस अवसर पर मौजूद गारमेंट एक्सपोर्टर्स एंड मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय जिंदल ने कहा कि स्क्रिप्स पर इतने ज्यादा डिस्काउंट से आयातकों को तो फायदा हो रहा है, जो निर्यातकों की कीमत पर अनुचित लाभ उठा रहे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक 16 अरब डॉलर के कुल परिधान निर्यात में करीब 5 प्रतिशत की प्रतिपूर्ति होती है, जो लगभग 6,000 करोड़ रुपए बनती है। व्यापक स्तर पर इस पर 20 से 25 प्रतिशत डिस्काउंट दिया जाता है, इससे परिधान क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों के मार्जिन पर लगभग 1,500 करोड़ रुपए का सीधा असर पड़ता है।

वस्‍त्र निर्यात की छूट योजना की संरचना में कमी से परिधान और वस्‍त्र उद्योग प्रभावित, सरकार से लेन-देन योग्य स्क्रिप्स के बजाय नकद प्रतिपूर्ति योजना को फिर से शुरू करने की मांग

RoSCTL योजना का उद्देश्य भारत के कपड़ा क्षेत्र को अन्य कम लागत वाले देशों जैसे बांग्लादेश और वियतनाम (कम श्रम और विनिर्माण लागत के कारण) के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना था। मांग सरकार की मंशा के अनुरूप रही है, जो हमेशा निर्यातकों को प्रतिपूर्ति करने की थी, लेकिन स्क्रिप्स के डिस्काउंट के कारण इस पूरी योजना का उद्देश्य और लक्ष्य विफल हो गया है। अपने मौजूदा स्वरूप में स्क्रिप्स पर डिस्काउंट से आयातकों को लाभ हो रहा है, जो निर्यातकों की कीमत पर अनुचित फायदा उठा रहे हैं। यह दुनिया के लिए ‘मेक इन इंडिया’ की सरकार की घोषित नीति को बढ़ावा देने के बजाय इस पूरी योजना के उद्देश्य और लक्ष्यों पर ही पानी फेर दे रहा है। अगर सरकार तत्काल RoSCTL की संरचना में संशोधन नहीं करती है, तो चिंता है कि लागत अक्षमताओं के कारण उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो सकता है। सरकार से उचित मदद न मिलने के कारण एक बार फिर परिधान मांग को अन्य कम लागत वाले देशों में स्थानांतरित कर देगी।

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