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बिस्किट, मिठाइयों, केक, फ्रूट जूस, जैली, टॉफी, चॉकलेट आदि में चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल किया जाता है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। यूरोपियन हार्ट जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल से हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कार्डियोवस्कुलर डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बारे में चेतावनी दे चुका है कि चीनी के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो रहे आर्टिफिशियल स्वीटनर एस्पार्टेम से टाइप-2 डायबिटीज और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ सकता है। एस्पार्टेम को कार्सिनोजेन की कैटेगरी में रखा गया। इसका मतलब है कि एस्पार्टेम कैंसर का भी कारण बन सकता है।
स्टडी के अनुसार दुनिया में अभी एक साल में करीब 120 करोड़ किग्रा आर्टिफिशियल स्वीटनर इस्तेमाल हो रहा है। यह अगले 4 साल में बढ़कर 2028 तक करीब 145 करोड़ किग्रा हो सकता है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है। भारतीय शहरों में करीब 38% शहरी लोग चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।
आर्टिफिशियल स्वीटनर में ब्लड क्लॉटिंग टेंडेंसी
विशेषज्ञों के अनुसार कई पैकेज्ड फूड्स में आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटॉल मिला हुआ है। इसके लगातार इस्तेमाल से ब्लड क्लॉटिंग का खतरा बढ़ जाता है, जो हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बनता है। इससे डायबिटीज और मोटापा दोनों बीमारियों का भी खतरा है।
भारत में 6 आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को है एफएसएसएआई की मंजूरी
आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से होने वाले नुकसान पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया की कई बड़ी हेल्थ बॉडीज चिंता जता चुकी हैं। इसके बावजूद इनके इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाई गई है। भारत समेत ज्यादातर देशों ने आर्टिफिशियल स्वीटनर्स के इस्तेमाल को मंजूरी दे रखी है। भारत में छह आर्टिफिशियल स्वीटनर्स को मंजूरी है।